Sunday, March 21, 2010

वो रात

वो रात अँधेरी काली सी आज भी मुझे डराती है जिस रात ने सबकुछ छीन लिया वो आज भी आँखों में नमी ले आती है
एक रात वो भी थी जब तु कहता था तु मेरा है दुनिया में कहीं रहूँ, बस तेरी आँखों में ही मेरा बसेरा है
सुबह शाम तेरा वो दीवानापन बच्चो की तरह वो इतराना, मेरे संग वो लड़कपन तेरा हर बात पे मुझे वो चिढाना
जब मै रुठू तो फूल कभी तोहफे लेकर आना, ना मानने पर मेरे मुझे बहो में बाँध लेना और थाम के हाथों को मेरे मुझे अपनी बातों में उलझाना
अफसाना बनके रह गया है अब तेरी मेरी ज़िन्दगी का फ़साना ना खुशनुमा रात रही ना दिन रहा वो सुहाना
उस रात अगर मै तुम्हे रोक लेती तो आज ये दिन ना आता, तु होता आज भी मेरे साथ और हर पल पहले की तरह मुस्कुराता!
यूँ तो बहुतों ने अपनों को उस दिन खोया पर लगता मुझे भारी मेरा ही गम है उस अँधेरी रात से लेकर आज तक मेरी आँखें नम है !!
इंसान ही इंसान का खून बहा रहा है ये किस धर्म का कर्म है? हमने तो पड़ा था इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है फिर क्यू हो रहे है ये दंगे फसाद क्यू हर घर मै छाया मातम है?