Monday, November 16, 2009

लडखडाती कलम......


शायर तो हम नहीं बस यु ही कलम चला लेते है कभी ख्वाब कभी ख्याल
कभी हकीकत को पन्नो पे बिखेर कर अपना दिल बहला लेते है!!

दीवानगी की हद क्या है, सिर्फ दीवाना जानता है
शमा के जलने का दर्द कहा परवाना जानता है !!

रूठो मगर वक़्त रहते मान जाओ, ये ना हो की तुम रूठे रहो और बाद मे पछताओ
जब जा रहे हो हम चार कांधो पर, और तुम अलविदा भी ना कह पाओ!

ये रात चाँद तारे लेके आई है, हर जगह चांदनी जगमगाई है
पर जाने क्यू मेरे जहाँ को रोशन करने मे चाँद ने भी की बेवफाई है!!

दिल के बिना कहा कोई जी पाया है जिसने दिल अपना दिया वो सिर्फ पछताया है
इस दिल को हमारे पास ही रहने दो खुद से दूर होके हमने इससे धडकना नहीं सिखाया है!!

माना ये वक़्त हमे याद करने का नहीं था, पर ख़ुशी है की आपने याद तो किया
सारे जहा की ख़ुशी है आपके पास, पर आपने हमारी कमी का एहसास तो किया!!

रात तो ख्यालो मे ही जाती है, पर अब तो दिन मे भी तेरा ही ख्याल आता है
बैठी होती हूँ महफिल मे, और ये मुझे तनहा कर जाता है!!

याद आप हमें हर वक़्त आते है फर्क है तो सिर्फ इतना की आप कह जाते है और हम कह नहीं पाते है!!

वक़्त यु ही गुजरता जायेगा और एक और याद पीछे छोड़ जायेगा कौन जाने कल
हम यहाँ हो ना हो पर यही तो वो पल है जो हर वक़्त आप लोगों की याद दिलाएगा!!


इस जहाँ मे कौन है ऐसा जो उम्र भर साथ निभाता है
वादे तो सब करते है पर वादों को कोई कोई ही निभा पता है !!

कहते है लोग की महफिलें तनहइयां दूर किया करती है
पर हमें तो अक्सर महफिलों मे ही तन्हाई मिलती है !!