Monday, December 14, 2009

शुक्रिया.....मेरी लडखडाती कलम को संभालने के लिए


नया जोश नया जूनून नयी तरंग है मेरे दिल मे भी उठी एक नयी उमंग है
लडखडाती कलम को मिली जो सराहना मेरी लडखडाती कलम बनी पतंग है
उड़ चली है आसमां में मदमस्त होके अपनी ही धुन मै देखो कैसी हुई मगन है
कोशिश कर रही है आपकी उमीदों पे खरा उतरने की इसलिए जा कर मिली इन्द्रधनुष के संग है
ये मत सोचियेगा ये अब नहीं जमीं के संग है भले ही आसमां की सैर पर हो पर अब भी जमीं पर ही इसके कदम है जिस दिन जमीं छोड़ी इसने उस दिन नहीं रहेगी ये कलम,आपके लिए अलग अलग रंगों को बिखेरेगी ये कलम क्यूंकि अब इसमें मिले है कुछ आपकी उमीदों के रंग
आपकी उमीदों पे खरा उतरने की कोशिश करेगी ये वादा करती है आपसे मेरी लडखडाते लडखडाते संभालती हुई कलम!!